logo

बिहार में क्या राज्यपाल कोटे की सीट बनी बड़े कारोबारियों का नया ठिकाना?

 | 
बिहार में क्या राज्यपाल कोटे की सीट बनी बड़े कारोबारियों का नया ठिकाना?

Patna: बिहार की राजनीति में एक बार फिर से राज्यपाल कोटे की सीट को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। सवाल उठ रहा है कि क्या अब ये सीटें बड़े कारोबारियों और रसूखदार लोगों का नया ठिकाना बन गई हैं? हाल के दिनों में कई ऐसे नाम सामने आए हैं, जिनका राजनीति से ज्यादा ताल्लुक कारोबार और सामाजिक छवि से है।  

इस बार चर्चा में हैं बिहार के चंपारण के बिजनेसमैन और समाजसेवी रूपेश पांडे। बैंकिंग और इंडस्ट्री में बड़ा नाम कमा चुके रूपेश पांडे अब विधान परिषद में एंट्री की तैयारी में हैं। एनडीए खेमे से उनका नाम राज्यपाल कोटे की सीट के लिए सबसे आगे बताया जा रहा है।  

क्या राज्यपाल कोटे की सीट राजनीति से ज्यादा कारोबार का हिस्सा बन रही है?

राज्यपाल कोटे की सीट का उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को विधान परिषद में जगह देना है, जिन्होंने कला, विज्ञान, शिक्षा, साहित्य या समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया हो। लेकिन हाल के वर्षों में यह सीटें उन लोगों को दी जा रही हैं, जिनकी सामाजिक छवि से ज्यादा उनकी आर्थिक ताकत चर्चा में रहती है।  

रूपेश पांडे पर उठे सवाल?

रूपेश पांडे के नाम को लेकर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि यह सीटें अब समाजसेवियों के बजाय रसूखदार और संपन्न लोगों को दी जा रही हैं। विपक्ष के एक नेता ने तंज कसते हुए कहा, "राज्यपाल कोटे की सीट अब सामाजिक सेवा के लिए नहीं, बल्कि 'बड़े कारोबारियों का क्लब' बन गई है।"  

क्या कहती है सरकार?

एनडीए के सूत्रों का कहना है कि रूपेश पांडे का नाम उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों और युवाओं के लिए उनकी योजनाओं के आधार पर सुझाया गया है। उनका दावा है कि पांडे शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने की सोच रखते हैं।  

राजनीति में कारोबारियों का बढ़ता दखल?

राजनीति में कारोबारियों का बढ़ता दखल कोई नई बात नहीं है। लेकिन राज्यपाल कोटे की सीटों पर ऐसे नामों का आना, जिनका राजनीति से सीधा संबंध नहीं है, सवाल खड़े करता है। अब देखना यह होगा कि क्या रूपेश पांडे का नामांकन राज्यपाल कोटे से होता है या यह सिर्फ एक सियासी चर्चा बनकर रह जाता है। लेकिन एक बात तो तय है, बिहार की राजनीति में राज्यपाल कोटे की सीटें अब सिर्फ समाजसेवा का मंच नहीं रहीं, बल्कि राजनीति और कारोबार के गठजोड़ का नया केंद्र बनती जा रही हैं।

Around the web